हिन्दू गाय की पूजा क्यों करते हैं? | Why do Hindus worship the cow?

जानिए हिन्दू धर्म में गाय की पूजा के पीछे छिपे आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक कारणों को।

SANATANA

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9/3/20241 min read

गौ माता की पूजा: हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलु

गौ पूजा भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण और अद्भुत प्रथा है, जिसका इतिहास हज़ारों साल पुराना है। यह प्रथा धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखी जा सकती है। इस लेख में, हम गौ पूजा के वैज्ञानिक आधार की भी बात करेंगे और यह देखेंगे कि इस प्रथा के पीछे वैज्ञानिक तथ्य क्या हैं।

  • हिन्दू धर्म में गाय का महत्व

  • इस प्रथा की विशेषता

धार्मिक ग्रंथों में गाय की पूजा

गाय को संस्कृत में धेनु कहा जाता है गाय की पूजा की परम्परा हिन्दू धर्म में बहुत प्राचीन है। वेदों में गाय को "आधिदेविक" माना गया है और उसे पूजनीय मानकर उसका सम्मान किया गया है। देवताओं और दानवों में जब समुद्र मंथन हुआ था तो १४ रत्नो में से एक गाय भी निकली थी जिसका नाम कामधेनु था । हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में गाय को माता मानकर उसकी सेवा करने को एक पवित्र कार्य माना गया है।

गौ माता की पूजा का वैज्ञानिक आधार

पहले एक पौराणिक कहानी से शुरू करते हैं, एक गाय और एक स्त्री की आपस गहरी मित्रता थी दोनों एक साथ गर्भवती हुई तो दोनों ने आपस में विचार किया कि जिसका भी प्रसव पहले होगा, दूसरा उसकी प्रसव वेदना में उसकी दाई की भूमिका निभाएगी और साफ सफाई एवम सेवा शुश्रषा करेगी । और उसके बाद पहला दूसरे की सेवा सुश्रुषा करेगी। समय बीतता गया, संयोग से स्त्री को प्रसव वेदना पहले शुरू हुई समय बीतता गया । और अपने दिए वचन अनुसार गाय ने स्त्री के बच्चे को जनने में दाई भूमिका निभाई और खूब सेवा शुश्रुषा भी की । तथा तन मन धन से अपनी मित्र और बच्चे की साफ सफाई तथा सेवा-शुश्रषा में लग गयी ।

बच्चा जनने में स्त्री के कमर का निचले हिस्से को जोर से दबाना पड़ता है जिसका कि गाय के खुर का निशान आज भी मनुष्यों के बच्चों के कमर के निचले हिस्से पर दिखाई पड़ता है ।

कुछ ही दिन में गाय को भी प्रसव वेदना शुरू हुई । गाय ने अपनी मित्र स्त्री को पुकारा लेकिन स्त्री ने कहा की वह अपने बच्चे को नहीं छोड़ सकती और अपने वचन से मुकर गयी । यह सुन कर गाय बहुत दुखी हुई । और गाय को अकेले ही अपना बच्चा जनना पड़ा । और उस स्त्री को श्राप भी दे दिया की जा तेरा बच्चा एक वर्ष बाद ही चलने लगेगा । जबकि गाय का बच्चा तुरंत ही खड़ा हुआ और चलने फिरने लगा । तब से ही इंसान का बच्चा १ साल बाद ही चलना फिरना शुरू करता है दो तीन महीने तो उसे कोशिश करने में ही लग जाता है । जबकि गाय का बच्चा आज भी पैदा होने के तुरंत बाद चलने लग जाता है ।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए, गाय का दूध और गोबर कई उपयोगिता और आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर होता है। इससे गौ को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होता है और उसकी पूजा की जाती है।

स्त्री गर्भाशय की संरचना और गाय की छवि में समानता

अब जरा ध्यान से इस चित्र को देखिये । शायद आप में से ज्यादातर लोगों ने इस चित्र को कही न कंही तो देखा ही होगा । स्त्री रोग विशेषज्ञ या विज्ञान की किताबों में अथवा इंटरनेट पर बना ये चित्र तो अपने देखा ही होगा । यकीन नहीं होता है तो गूगल पर (Ovary) टाइप कीजिये । ये चित्र सामने आ जायेगा । ये स्त्री के गर्भाशय का चित्र है । जो कि ठीक गाय के चेहरे के सामान दिखता है या यों कहिये कि गाय की छवि कह रही है कि मैं तुम्हारी माता हूँ मनुष्यों । ये संयोगवश मात्र ही नहीं है अपितु हमारे ऋषि मुनियों को इसका ज्ञान प्रारम्भ से ही था । इस आधार पर भी सनातन धर्म में गाय को माता माना गया है तथा गाय को माता मानने का पक्ष भी संबल होता है ।

स्त्री तथा गाय की गर्भाविधि

अब जरा ध्यान से इस चार्ट को देखिये । आंखे खुली की खुली रह जाएंगी ।

एक भारतीय नस्ल की गाय का गर्भा अवधि का समय २७९ दिन यानि कि नौ महीने और इंसान का २८० दिन है सिर्फ एक दिन का ही अंतर है एक दिन का अंतर इसलिए भी हो सकता है कि गाय दिन में गर्भवती होती है जबकि मनुष्य रात में।  इस पर उचित शोध अभी तक नहीं हुआ है। दोनों का एक सामान समय होने वजह से माता मानने की भावना प्रबल हो जाती है। 

Gynecologist ( गाय-नेको-लॉजिस्ट )

अब इस को समझते है कि Gyanecology में गाय कँहा से आ गयी भाई । यह कोई सामान्य बात नहीं है यह गहन शोध का विषय है।  गायनेकोलोजी (गाय + नेक + लॉजी ) से बना है gynace शब्द लैटिन का शब्द है जिसे प्रसव विज्ञान कहा जाता है । प्राचीन यूनान में ये शब्द प्रयोग तो कर रहे थे । लेकिन उनको इसका अर्थ पता नहीं था । यह कोई संयोग से तो नहीं हो सकता है ।

गाय-नेको-लोजी

गाय का इंसानो के लिए लाभदायक होना

गाय को माता मानने के पीछे एक मुख्य वजह ये भी थी। गाय का शांत स्वभाव, गाय का दूध इंसानी बच्चों के लिए पोस्टिक एवं सुपाच्य होता है। गाय के बछड़े यानि कि बैल खेत जोतने के काम आता है। जो कि पुरे परिवार का पेट भरता था। तथा आर्थिक समृद्धि का प्रतीक भी था। गाय का गोबर खेतों के लिए उर्वरक का काम करता था। भारत को सोने की चिड़िया बनाने में भी बैलों का अहम् योगदान था।

जिसे आज लगभग भुलाया जा चुका है । महाराष्ट्र और उड़ीसा के गांवों में बैलों की पूजा की जाती है जिसे बैल पोला नाम का त्यौहार कहा जाता है ।

इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से हमने देखा कि हिन्दू समुदाय के लोग गाय की पूजा क्यों करते हैं और इसका महत्व क्या है। गाय की पूजा के पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और मानवता के मूल मूल्य होते हैं जिनका पालन करके हम एक सद्गुणी, सनातनी जीवन जी सकते है।

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