सनातन धर्म (हिंदू धर्म) का उद्धभव और सनातन धर्म से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

SANATANA

admin

11/11/20241 min read

हमारे आज के इस लेख में हम आपको हिंदू धर्म के उद्भव और इससे जुड़े कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण बातों के बारे में विस्तार से बताएंगे। जिससे अगर आपको हिंदू धर्म के बारे में अभी अभी पता चला है और आप इससे नए नए जुड़े है तो आपको काफी सारी नई नई और रोचक बातों के बारे में पता चलेगा। अगर आप पहले से ही हिंदू धर्म से जुड़े है तो भी आशा है की इस लेख से आपको कुछ ना कुछ नया तो जरूर सीखने को मिलेगा तो इस लेख को पूरा अवश्य पढ़ें।

हिंदू धर्म का उद्धभव

हिंदू धर्म के उद्धभव के बारे में काफी सारे विभिन्न मत है, परंतु यह बात पूरी तरह से सत्य है की हिंदू धर्म सबसे प्राचीन धर्म है। इस समय हिंदू धर्म के अनुयायियों की संख्या करीबन १.२ अरब (1.2 बिलियन) के करीब है और इस वजह से यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म भी है। यह संख्या पूरे विश्व की जनसंख्या का करीब १५ प्रतिशत है हालांकि, इसके अधिकांश अनुयायी भारत में ही रहते हैं।

जहां तक सनातन धर्म के उद्धभव की बात है तो सनातनी हिंदू ऐसा मानते है की हिंदू धर्म का उद्भव समय से परे है और यह हमेशा से ही था।धर्म सनातन का उल्लेख प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में भी मिला है। हिंदू धर्म का ना कोई संस्थापक है और ना ही कोई प्रारंभिक शिक्षक। हिंदू धर्म में कोई केंद्रीय संगठन नही है और ना ही कोई संस्था या व्यक्ति इसका प्रभारी है।

हिन्दू धर्म, धर्म नही बल्कि जीवन पद्धति है

हालांकि, बोलने और समझने की सरलता के लिए भले ही हिंदू धर्म का उपयोग किया जाता हो पर यह धर्म नही बल्कि एक जीवन पद्धति है। इसी दर्शन के कारण सनातन धर्म में सबसे ज्यादा ध्यान उसका पालन करने वाले व्यक्ति पर दिया जाता है। इससे हर व्यक्ति अपने खुद के चुने हुए मार्ग पर चल सकता है। सनातन धर्म का यह मानना है की जब एक व्यक्ति सही मार्ग पर चलकर और भी अच्छा मनुष्य बनता है तो उसके साथ साथ समाज भी अपने आप ही अच्छा बन जाता है। हिंदू धर्म अपने आप में ही एक बहुत ही अतुलनीय धर्म है यह एक अकेला धर्म नही है बल्कि बहुत सारी मान्यताओं और दर्शन का मेल है। हालांकि, हिंदू धर्म भले ही सबसे प्राचीन धर्म हो पर हिंदू धर्म में कभी ठहराव नही देखा गया है। इसमें निरंतर बदलाव आता गया है और यह बदलाव सकारात्मक ही रहे है। परिस्थितियों के अनुसार ही इस धर्म ने खुद को और भी बेहतर बनाया है। इसी कारण से बहुत सी कठिन परिस्थितियों में भी हिंदू धर्म ने खुद को डगमगाने नही दिया।

सनातन धर्म आपको किसी बने बनाए मार्ग पर चलने के लिए विवश नही करता है और ना ही यह कहता है की आपको जो बता दिया गया है उसे ही पालन करना है। सनातन धर्म आपके अंदर उठ रहे प्रश्नों को भी मान्यता देता है और आपको इस योग्य भी बनाता है कि आप इन प्रश्नों का उत्तर स्वयं से ही ढूंढ सके। इस धर्म में सिर्फ आत्म ज्ञान को ही सच्चा ज्ञान माना जाता है।

हिंदू धर्म और सनातन धर्म में अंतर

हिंदू धर्म और सनातन धर्म में कोई अंतर नही है बल्कि आप इसे एक तरह से एक दूसरे का पर्यायवाची मान सकते हैं या आप यह कह सकते है की आजकल हिंदू धर्म का नाम ज्यादा प्रचलन में है। सनातन धर्म का एक और नाम वैदिक धर्म भी है। सनातन धर्म का नाम हिंदू धर्म के पड़ने के पीछे का एक प्रसिद्ध मत यह है की जब विदेशी भारत आए तो उन्होंने सिंधु घाटी का मार्ग चुना था। अब क्योंकि उनकी भाषा मेंनाम का अक्षर ही नही था इस कारण वह सिंधु को सिंधु ना कहकर हिंदू कहने लगे। इसी कारण से ही भारत देश को भी हिंदुस्तान कहा जाने लगा और यहां रहने वाले लोग हिंदू कहे जाने लगे। तो बस यह नाम ज्यादा प्रचलित हो गया।

हिंदू धर्म और विज्ञान

हिंदू धर्म और विज्ञान का आपस में बहुत ही गहरा संबंध है क्योंकि यह धर्म ऐसा धर्म है जो की वैज्ञानिक मान्यताओं के हिसाब भी अनुकूल है। यहां तक की सदियों से चली आ रही सनातन धर्म की प्राचीन परंपराओं के पीछे भी अक्सर कोई ना कोई वैज्ञानिक कारण छुपा होता है।

इसके अलावा भारत के निवासियों में प्राचीन समय से ही विज्ञान में बहुत ही ज्यादा रुचि रही है। ऐसे कई अविष्कार जिन्हे विदेशों में बहुत बाद में किया गया उनमें से कई अविष्कारों का हिंदू धर्म ग्रंथो में बहुत पहले ही उल्लेख कर दिया गया था जिससे कई जाने माने विदेशी वैज्ञानिक भी अत्यंत ही प्रभावित हुए। हिंदू धर्म की इन बातों से उन पर कितना ज्यादा प्रभाव पड़ा है इसका उल्लेख इन वैज्ञानिकों ने कई बार किया है। इनमें से कई वैज्ञानिकों ने भारत की यात्रा भी की और भारत के ग्रंथो का गहन अध्ययन भी किया है। वह अक्सर हिंदू धर्म से मिले हुए ज्ञान के बारे में बताते रहते हैं।

आइए, कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण अविष्कारों के बारे में थोड़ा विस्तार में जान लेते हैं।

1. शून्य का अविष्कार

विश्व की महान अविष्कारों की बात हो और शून्य के अविष्कार की बात ना हो ऐसा कैसे हो सकता है। इस अविष्कार को करने में भी एक प्राचीन महान गणितज्ञ आर्यभट्ट जी का बहुत बड़ा योगदान था। आर्यभट्ट जी ही वह पहले गणितज्ञ थे जिन्होंने शून्य को उसका प्रतीक चिन्ह दिया। उन्ही के कारण जोड़ और घटाने आदि में शून्य का उपयोग होने लगा। शून्य के अविष्कार से एक और बड़ा फायदा यह हुआ कि की स्थानीय मान प्रणाली में इसके समन्वय से बड़ी से बड़ी संख्या को लिखने के लिए भी केवल १० प्रतीकों की ही आवश्यकता ही पड़ती है।

2. वैदिक खगोल विद्या

वैदिक खगोल विद्या भी एक अत्यंत प्राचीन वैदिक ज्ञान है जो की हिंदू धर्म के ज्ञान को पूरे विश्व में फैला रहा है। तारों और ग्रहों के द्वारा मनुष्य के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में वैदिक एस्ट्रोलॉजी बताती है। यह भी काफी प्राचीन विद्या है और हिंदू धर्म के अत्यंत प्राचीन ग्रन्थों में इसका उल्लेख किया गया है। भारत में ही नही बल्कि अब पूरे विश्व के कई सारे देशों में वैदिक एस्ट्रोलॉजी को माना जाता है।

3. सूर्य केंद्रीय सिद्धांत (हेलियोसेंट्रिक थियरी)

विश्व विख्यात गणितज्ञ आर्यभट्ट जी ने केवल शून्य को ही नही खोजा बल्कि खगोल विज्ञान के क्षेत्र में भी कई सारे योगदान दिए है। आर्यभट जी प्रखर ज्ञानी थे। उनकी पुस्तक आर्यभट्टीय में खगोल विद्या से जुड़ी बहुत सारी बातों का विवरण है। आर्यभट्ट जी ने बहुत पहले ही यह बता दिया था की पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है और साथ ही साथ सूर्य के चारो ओर भी चक्कर लगाती है। इसे ही सूर्य केंद्रीय सिद्धांत या हेलियोसेंट्रिक थियरी भी कहा जाता है। इस थियरी के अनुसार पृथ्वी और दूसरे ग्रह सूर्य के चारो तरफ चक्कर लगाते हैं। इसके अलावा उन्होंने दिन कितना बड़ा होता है और पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी कितनी है आदि को लेकर भी अनुमान लगाया था।

4. चक्रवाल विधि

चक्रवाल विधि भी एक अत्यंत प्राचीन गणितीय विधि है जिससे गणितीय समीकरणों को हल किया जाता है। इसे महान गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त जी ने बनाया था। बाद में जयदेव जी ने इसे विस्तृत समीकरणों के हिसाब से बना दिया और बाद में भास्कर द्वितीय ने इसमें थोड़े और बदलाव किए।

विविधता पर विश्वास

हिंदू धर्म विविधता पर भी विश्वास रखता है और यह इसकी एक अत्यंत महत्वपूर्ण विशेषता भी है। हिंदू धर्म विविधता में भी विश्वास रखता है। यह पर आपको आपके विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता मिलती है। सनातन धर्म यह मानता है की किसी एक समस्या के बहुत से हल हो सकतें हैं।

शांतिप्रियता और सह अस्तित्व में विश्वास

हिंदू धर्म की शांतिप्रियता को लेकर के किसी भी तरह के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। भारत ने अपना ज्ञान पूरे विश्व को दिया है। भारत के सद्भाव और शांतिप्रियता को पूरा विश्व जानता है। हिंदू धर्म के अनुयायी सभी के साथ शांति पूर्वक रहते हैं। विवाह संस्कार की उत्पत्ति भी हिंदू धर्म में हुई थी जिसे अब पूरे विश्व ने अपना लिया है।

प्रकृति के लिए प्रेम और आदर का भाव

सनातन धर्म ने सदैव से ही प्रकृति के लिए प्रेम और आदर भावना की मिसाल कायम की है। आज जाकर के विश्व में लोग पर्यावरण संरक्षण आदि की बात कर रहे है जबकि सनातन धर्म तो हमेशा से ही पर्यावरण प्रेम और इसके संरक्षण की बात करता आ रहा है। परिस्थिति विज्ञान पर बहुत ही प्राचीन लेख मिल जायेंगे। सनातन धर्म से जुड़ी परंपरायें अक्सर आपको सूर्य, चंद्रमा, पेड़–पौधे ,पर्वत और नदियों आदि से जुड़ी मिल जायेंगी। इन्ही से पता चलता है की सनातन धर्म प्रकृति के लिए भी कितना प्यार और सम्मान रखता है। सनातन धर्म के पर्व त्योहार भी अक्सर ऋतुओं के अनुसार ही होते है।

तो हमारे आज के इस लेख में आपने हिंदू धर्म से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में विस्तार से जाना। आशा है कि आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। यदि आपके कुछ प्रश्न है तो आप हमसे पूछ सकते है। हम आपके प्रश्नों का उत्तर देने का पूरा प्रयास करेंगे। आगे भी हम ऐसे ही और भी ज्ञानप्रद और रोचक लेख लेकर के आते रहेंगे

डिसक्लेमर:

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